विश्व शिक्षा मंत्रालय को भारत में ज्ञान मंत्रालय का नाम दिया गया है। लौकिक जानकारी को शिक्षा समझा जाता है| अलौकिक जानकारी ज्ञान समझा जाता है। लेकिन भारत मे विद्या वही है जो बंधन मुक्त करे-
सा विद्या या विमुक्तये।
और जब शिक्षा मोक्ष कारक हो जाएगी तो वह ज्ञान ही हो जाएगा। आज विद्यालयों और विश्वविद्यालय में विद्या उसे मानते है जो आँख कान नाक स्पर्श आदि द्वारा समझी जा सके जिसे हम भारत की भाषा में इन्द्रिय ज्ञान कहते हैं आत्मा का ज्ञान या आत्मज्ञान विश्वविद्यालय में हास्य या उपेक्षा की वस्तु मानी जाती है।
इसीलिए विश्व के सभी विश्वविद्यालय इन्द्रियज्ञान या मायावी शिक्षा के प्रवर्तक होने के कारण नास्तिकों के अड्डे बन गये। माया का आधार हरि उसमें हास्य या उपेक्षा की वस्तु हो गया।और माया केंद्रित होने के कारण वह विद्या बंधनमुक्त कराने की बजाय बंधन का कारण बन गयी।
क्योंकि माया और हरि का अभिन्न संबंध है| अतः उसी मायावी विद्या में हरि तत्व जोड़ देने से वह पूर्णमदा पूर्णमिदं होकर बंधनमुक्ति का कारक बनकर ज्ञान में बदल जाएगी। फिर लौकिक ज्ञान के लिए विश्वविद्यालय और आत्मज्ञान के लिए आश्रम दो अलग अलग संस्थाओं की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। और आत्मज्ञान या हरि से संयुक्त हो जाने के कारण 'अल्पकाल विद्या सब पाई' जनसाधारण के लिए संभव हो जाएगा।
इसके लिए रामराज्य का ज्ञान मंत्रालय अयोध्या में गुरु वशिष्ठ विश्वविद्यालय की स्थापना करेगी। गुरु वशिष्ठ विश्वविद्यालय विश्व के हर जिले में स्थापित होने रामराज्य विद्यालयों को उचित दिशा निर्देश देकर विश्व के मानवों के लिए दैवी शिक्षा या पूर्ण ज्ञान की व्यवस्था करेगा।
एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्र जन्मना।
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरण पृथिव्याम् सर्व मानवाः।
इस देश में जन्मे बालक पृथ्वी के सभी मानवों को अपने चरित्र से शिक्षा देंगे। जब शास्त्र ने इस भारत देश को पृथ्वी के सब मानवों को शिक्षा देने का निर्देश दिया है तो विश्व में कहीं कोई अज्ञानी होगा तो उसका निहितार्थ यह होना चाहिए कि भारत ने जगद्गुरुत्व के दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं किया।