रामराज्य एक सीमा विहीन विश्वव्यापी राज्य है । जो "रामराज्य दुःख काहु ना व्यापा।" के आधार पर विश्वभर में दुःख विहीन समाज की रचना में संलग्न है ।
'सप्तदीप सागर मेखला । एक भूप रघुपति कौशला।।'
इसलिए विश्व के सभी मानवों के लिए इसकी नागरिकता उपलब्ध है । रामराज्य की राजधानी अयोध्या कल्प कल्पान्तर से रही है । 'कल्प कल्प प्रति प्रभु अवतरहीं।'
विश्व रामराज्य तभी संभव है जब हम अपने घरों में रामराज्य ले आएं ।
सच पूछा जाय तो पूरे विश्व में रामराज्य है 'पत्ता तक हिलता नहीं उसकी इच्छा के बिना' या 'होगा वही जो मंजूरे राम '। अतः दुनिया में जो भी हो रहा है राम की इच्छा से, राम की प्रेरणा से, राम के अनुग्रह से हो रहा है ।
राम की दृष्टि से देखें तो रामराज्य अभी भी है । परन्तु हम दुनिया को अपनी नज़र से ही देखना चाहते है यही कष्ट का कारण है । अपने आपको पुण्यात्मा समझ लेते हैं और दूसरों पापी । इसलिए विश्व में जो रामराज्य चल रहा है उसका अनुभव नहीं होता ।
अतः रामराज्य लाना नहीं है वरन जो रामराज्य चल रहा है उसका अनुभव करना है ।
इसके लिए लिए भरत की तरह अपने घर में राम पादुका रखकर उसकी आज्ञा से कार्य करें जिससे हमें राम की कृपा, राम के अनुग्रह का अनुभव हो सके । रामपादुका एक सांकेतिक हार्डवेयर है । उसको रामायण के आधे घंटे के मासपारायण पाठ राम संकीर्तन से सजीव करने की आवश्यकता होती है । सजीव रामपादुका रामकुण्ड, धर्मपुर अयोध्या से मंगाई जा सकती है । राम पादुका को अपने घर में सजीव रखना ही रामराज्य की नागरिकता है जिससे धीरे धीरे घर में रामराज्य की अनुभूति होकर घर का वातावरण सुखमय हो जायेगा ।